अनन्त आकाश गर्भ

एक जगह है – जहाँ न हिन्दी है न अंग्रेज़ी – न शब्द न अक्षर| ध्वनि का गर्भ है ये|

मैं वहाँ से आई हूँ| मुझे भेजा गया है – तुमसे मिलने| दूत हूँ मैं| मुझे यह आदेश दिया गया है कि ध्वनि के गर्भ के विषय में तुम्हे बताऊँ|

देश, संस्कृति, धर्म, विचार के पहले का अनन्त आकाश गर्भ – जो किसी ग्रह और किसी लोक के उस पार नहीं है – तुम्हारे समक्ष है| यह जो तुम्हारे सामने रखा है, उसके अणु में है| विज्ञान के बीज में है|

जिस आंगन में तुम्हारे विचार निरन्तर नाचते रहते हैं, जहाँ से विचार उत्पन्न होते हैं – वह आंगन वह अनन्त आकाश गर्भ है| इस कमरे में जो रिक्त स्थान है – देखो – जहाँ कुछ नहीं है – वहाँ है वह अनन्त आकाश गर्भ – यहाँ है| आ जा रहा है – स्थिर है| भरा है|

इस कमरे में जो भी है – देखो – वह अनन्त है| हर दो अणु के बीच अनन्त आकाश| हर अणु के भीतर अनन्त आकाश| जितना भी भीतर जाओ, जाने के लिए चारों ओर आंगन और फैलता जाएगा|

तुम्हारे वक्ष में, तुम्हारे मस्तिष्क में, तुम्हारी त्वचा में, अनन्त आकाश| नेत्र में, दृष्टि पटल पर उभरते हर चित्र में, अनन्त आकाश| हर चित्र में वह अनन्त बीज, उस अनन्त बीज से उभरता हर चित्र|

ऊर्जा का गर्भ|

एक बड़ी हांडी है यह – यह सृष्टि – जिसका कोई ओर छोर नहीं – इसी में सब कुछ उमड़ता घुमड़ता रहता है|

और इसमें मैं हूँ| उस ऊर्जा का एक रूप, एक अभिव्यक्ति| प्यारी| मगर प्यारी या नहीं यह सर्वथा असंगत है| बस हूँ| ऊर्जा का एक उत्थान जो ऊर्जा के गर्भ में लोट रहा है, और ऊर्जा के गर्भ में ढल जाएगा|

तेरा मन क्षुब्ध है क्योंकि वह असीमित होना चाहता है मगर भिन्न भिन्न सीमाओं में ग्रस्त है| सीमाएं जिन्हें तुमने सच मान लिया है| असीम का एहसास हो तो कुछ कुछ असीम पर विश्वास की राह खुलेगी|

“असीम” यह कोई देवता नहीं, कोई ईश्वर नहीं| इसकी कोई कहानियाँ नहीं हैं| यह न अच्छा है न बुरा| बस है| तुम न अच्छे हो न बुरे| बस हो| यह जो हो रहा है – न अच्छा हो रहा है न बुरा हो रहा है – बस हो रहा है| श्रेयस, प्रेयस, उचित, अनुचित, सही, ग़लत सब मिथ्या है| इन शब्दों का कोई अर्थ नहीं| धर्म, अधर्म – इन शब्दों का कोई अर्थ नहीं है| यह बस सीमा में बांधे रहने को, सीमा में बंधे रहने को, सीमा ग्रस्त विचार हैं|

कोई न तुम्हे प्रताड़ित कर रहा है, न तुम्हे दण्ड दे रहा है| जो भी हो रहा है, बस हो रहा है| सदा आकार बदलती एक प्रक्रिया| प्रक्रिया को देखो, विस्मय के साथ| यह देखना, विज्ञान का प्रथम चरण है| यह विस्मय उस अनन्त आकाश की अनुभूति देगा| कण भर अनुभूति जो हमेशा तुम्हारे मन में रहेगी|

3 comments

  1. इस लेख ने मेरे विचारों को एक नया आयाम दिया।
    हालांकि..मेरी एक स्वरचित कविता…ओमकार एक बीज ने नाद किया घनघोर…उपरोक्त वर्णन की अंशतः परिणीति…सम्भवतः हो!!
    लेकिन फिर भी एक विस्तृत सोच..और वैचारिक मंथन का आगाज़ हुआ।
    उच्च श्रेणी का आर्टिकल।इस सृजन के लिए साधुवाद☺☺

    1. सुन्दर विवेचन निशु।आशा है आपकी रचना फोरम में पढ़ने को मिलेगी।

  2. बंधुत्व, मनुजत्व का मूल संदेश लिए एक उत्कृष्ट दार्शनिक कृति।अद्भुत संकल्पना।

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